नई पुस्तकें >> सत्ता का सत्य सत्ता का सत्यमुकेश भारद्वाज
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"सत्ता का सत्य : खबरों के बीच विचारों की अनकही कहानी"
अख़बार का पत्रकार दैनिक रूप से चीज़ों को देखता और समझता है। उसका लिखा समाज के सोच-विचार का ईंधन है। यानी, ख़बर और उसकी समीक्षा किसी भी जीते-जागते समाज को सोचने और समझने का रास्ता सुझाती हैं। एक अख़बार ख़बर, विज्ञापन और विचारों का कोलाज होता है। उसमें छपे विचारों और ख़बरों को संचयित रूप दिया जाता रहा है। उसे ख़ास सन्दर्भों में ऐतिहासिक छुअन के साथ संकलित करना आने वाले वक़्त के लिए अक्सर फ़ादेयमन्द रहता है। हिन्दी दैनिक जनसत्ता के बेबाक बोल स्तम्भ में छपे मुकेश भारद्वाज के लेख 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद के बदले भारत पर जल्दी में किये गये शोध की तरह है। यह किताब के रूप में संकलित होकर उन शोधार्थियों के काम का हो सकता है जो भरपूर समय और समझ के साथ राज और समाज को पहचानने की कोशिश करता है। अख़बार की ख़बरों और विज्ञापनों के बीच कुलबुलाते विचारों को एक किताब में सुरक्षित रखने की कोशिश है ‘सत्ता का सत्य’।
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